सोमवती अमावस्या के दिन क्या करें...?
सोमवती अमावस्या स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पांडव पूरे जीवन तरसते रहे, परंतु उनके संपूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई…
सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। वर्ष में कई बार सोमवती अमावस्या आती रहती है।
इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसेविधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढ़ाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी मानाजाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।इस दिन रद्राभिषेक कराना चाहिए। नाग के जोड़े चांदी या सोने में बनवाकर उन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर दें। सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है . शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, काले तिल चढ़ाये ।
पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है।किसी भी शिव मंदिर में सोमवती अमावस्या या नाग पंचमी के दिन ही काल सर्प दोष की शांति करनी चाहिए। काल के स्वामी महादेव शिव जी है सिर्फ शिव जी है जो इस योग से मुक्ति दिला सकते है क्योंकि नाग जाति के गुरु महादेव शिव हैं।
शास्त्रो में जोउपाय बताए गये हैं उनके अनुसार जातक किसी भी मंत्रका जप करना चाहे, तो निम्न मंत्रों में से किसी भी मंत्र का जप-पाठ आदि कर सकता है।
▶१- ऊँ नम शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए और शिवलिंगके उपर गंगा जल, काले तिल चढ़ाये ।
▶२ – महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है।
▶3 -नव नाग स्तुति का पाठ करें ।
अनंतं वासुकिं शेषंपद्म नाभं च कम्बलं।शंख पालं धृत राष्ट्रं तक्षकं कालियंतथा॥
एतानि नव नामानि नागानां चमहात्मनां।सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः कालेविशेषतः॥
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्॥
जिनकी कुंडली में शनि ग्रह के कारण चंद्रमा कमजोर हो रहा है या साढ़ेसती चल रही हो और वह मानसिक विकारों से दिन-प्रतिदिन ग्रस्त होते जा रहे हों, वे सोमवती अमावस्या पर दूध, चावल, खीर, चांदी, फल, मिष्ठान और वस्त्र इत्यादि अपने पितरों के निमित्त पिंडदान करवाकर इतना पुण्य प्राप्तकर सकते है, जिससे उनकी कुंडली में जरूरी ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक रूप धारण कर लेगी।
सोमवती अमावस्या पर स्त्रिया अपने सुहाग की रक्षाऔर आयु की वृद्धि के लिए पीपल की पूजा करती हैं। पीपल के वृक्ष को स्पर्श करने मात्र से पापों का क्षय हो जाता है और परिक्रमा करने सेआयु बढ़ती है और व्यक्ति मानसिक तनाव से मुक्त हो जाता है।अमावस्या के पर्व पर अपने पितरों के निमित्त पीपल का वृक्ष लगाने से सुख-सौभाग्य, संतान, पुत्र, धन की प्राप्ति होती है और पारिवारिक क्लेश समाप्त हो जाते है.
सोमवती अमावस्या का महत्त्व
सोमवती अमावस्या स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस पर्व पर स्नान करने लोग दूर-दूर से आते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पांडव पूरे जीवन तरसते रहे, परंतु उनके संपूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई। किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को हो तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा। इस दिन नदियों, तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है। यही कारण है कि गंगा और अन्य पवित्र नदियों के तटों पर इतने श्रद्धालु एकत्रित हो जाते हैं कि वहां मेले ही लग जाते हैं। सोमवती अमावस्या को गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में स्नान पहले तो एक धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता था। निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह स्त्रियों का प्रमुख व्रत है। सोमवार चंद्रमा का दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। सोमवार भगवान शिव जी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिव जी को समर्पित होती है।इस दिन यदि गंगा जी जाना संभव न हो तो प्रातःकाल किसी नदी या सरोवर आदि में स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी की भक्तिपूर्वक पूजा करें। फिर पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्तु चढ़ाए। प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखकर समापन के समय वे सभी वस्तुएं ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।
सोमवती अमावस्या की कथा
जब युद्ध के मैदान में सारे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया, भीष्म पितामह शर-शैय्या पर पड़े हुए थे। उस समय युधिष्ठिर भीष्म पितामह जी से पश्चाताप करने लगे। धर्मराज कहने लगे, हे पितामह! दुर्योधन की बुरी सलाह पर एवं हठ से भीम और अर्जुन के कोप से सारे कुरू वंश का नाश हो गया है। वंश का नाश देखकर मेरे हृदय में दिन रात संताप रहता है। हे पितामह! अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं, कहां जाऊं, जिससे हमें शीघ्र ही चिरंजीवी संतति प्राप्त हो। पितामह कहने लगे, हे राजन ! धर्मराज मैं तुम्हें व्रतों में शिरोमणि व्रत बतलाता हूं, जिसके करने एवं स्नान करने मात्र से चिरंजीवी संतान एवं मुक्ति प्राप्त होगी। यह व्रत सोमवती अमावस्या का है। हे राजन! यह व्रतराज (सोमवती अमावस्या का व्रत) तुम उत्तरा से अवश्य कराओ जिससे तीनों लोकों में यश फैलाने वाला पुत्र रत्न प्राप्त होगा। धर्मराज ने कहा, कृपया पितामह इस व्रतराज के बारे में विस्तार से बताइए। ये सोमवती कौन है? और इस व्रत को किसने शुरू किया। युधिष्ठिर के इस आग्रह पर पितामह भीष्म ने गुणवती और सोमा की कहानी सुनाई और बताया कि सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव की आराधना करते समय गुणवती और सोमा की कथा का श्रणव करना चाहिए। ऐसा करने से पारिवारिक जीवन में सुख बना रहता है और संतान परंपरा अक्षुण्ण बनी रहती है।
हनुमान चालीसा का पाठ करें - यदि आप चाहे तो इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं। वैसे तो हनुमान चालीसा का पाठ हर रोज किया जाना चाहिए, लेकिन यदि आप रोज यह पाठ नहीं कर पाते हैं तो अमावस्या के दिन अवश्य करें। शाम के समय किसी भी हनुमान मंदिर जाकर पाठ करें। सिंदूर और चमेली का तेल भी अर्पित करें। दीपक जलाएं। इस उपाय से हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो सकती है।
0 comments:
Post a Comment