छत्तीसगढ़ का राजधानी रायपुर. से 117 किमी दूर कवर्धा में शनिदेव का एक ऐसा देवालय भी है, जहां वे अपनी पत्नी देवी स्वामिनी के साथ पूजे जाते हैं। इतना ही नहीं जहां देश के प्रमुख शनि मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद रहे हैं, वहीं देश में शनिदेव की एकमात्र इस सपत्नीक प्रतिमा की पूजा से महिलाओं को भी कोई रोक-टोक नहीं है। इस शनिदेवालय की ख्याति इसलिए भी है, कि यहां पति-पत्नी दोनों एक साथ शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। जबकि भारत के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में महिलाओं के प्रवेश पर काफी विरोध है।
शनिदेव की प्रतिमा पांडव कालीन बताई जाती है। ऐसा माना जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने कुछ समय भाेरमदेव के आसपास जंगल में भी बिताया था। उस समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने ग्राम करियाआमा में भगवान शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना की थी।
मान्यता अनुसार शनिदेवालय के समीप से गुजरते ही बैलगाड़ी स्वत: ही रुक जाती थी। उस दौरान बैगा बांस के टुकड़े में भरे तेल को शनिदेव की प्रतिमा में चढ़ाते थे। तब बैलगाड़ी आगे बढ़ती थी।
मान्यता अनुसार मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु ग्राम करियाआमा स्थित शनिदेवालय पहुंचते हैं। यहां हर साल जयंती पर भगवान शनिदेव का अभिषेक कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद आस-पास के गांव के लोगों को खाना खिलाया जाता है। मंदिर समिति देवालय को विकसित करने का प्रयास कर रही है।
शनि मंदिर। कवर्धा। रायपुर।छत्तीसगढ।
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